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Thursday, 11 August 2016

ओलंपिक में अब तक की नाकामी पर नाराजगी से पहले ये लेख पढ़िए

 lukiwils     03:57     Abhinav Bindra, rio 2016, Shobha De     No comments   

2007-08 के ऑस्ट्रेलिया दौरे की बात है. सचिन तेंडुलकर मुझे खिलाड़ियों की मानसिकता, उनकी कामयाबी, उनकी नाकामी और मीडिया में उन पर होने वाली चर्चा के विषय में बात कर रहे थे. सचिन तेंडुलकर ने जो मुझे बताया था वो आप लोगों से शेयर कर रहा हूं. उनका कहना था कि वो हर मैच में जब मैदान के भीतर जा रहे होते हैं तो ये सोच कर जाते हैं कि वो वहां शतक लगाएंगे. अच्छी पारी खेलेंगे, अपने देश को जिताएंगे. लेकिन हर बार ऐसा नहीं हो पाता है. अगर हर बार जब वो मैदान में जो सोच कर गए वो कर लें तो फिर आज उनके शतकों की संख्या शायद 500 से भी ज्यादा होती. लेकिन उन्होंने इसी बात को दूसरी तरह से भी समझाया. उन्होंने कहा कि दुनिया का कोई भी खिलाड़ी मैदान में ‘फेल’ होने के लिए नहीं उतरता, लेकिन ‘फेल’ होता जरूर है. उसके बाद उन्होंने बात को आगे बढ़ाया, कहने लगे कि अगर कोई खिलाड़ी ‘फेल’ हुआ है तो उसे पता होता है कि आज उसकी आलोचना होगी. उस आलोचना के लिए वो तैयार भी रहता है. खिलाड़ियों को तकलीफ उन आलोचनाओं से होती है- जो बेवजह बेसर पैर की हों. उनका कहना था कि मान लेते हैं कि मैं और वो यानी सचिन तेंडुलकर बहुत अच्छे दोस्त हैं, फिर भी अगर वो ‘फेल’ हुए हैं तो मैं उनकी तारीफ नहीं कर सकता. इससे उलट अगर मैं और वो एक दूसरे को बिल्कुल पसंद नहीं करते तब भी अगर उन्होंने शतक लगाया है या टीम को जिताया है तो मैं उनकी आलोचना नहीं कर सकता. कुल मिलाकर उनकी इस बातचीत का मकसद ये था कि खेलों पर अपनी राय देने वालों को ये समझना होगा कि वो नतीजे जानने के बाद अपनी बात कहते हैं. अब उनकी इस बात को इन दिनों चल रहे विवाद से जोड़कर देखिए, मामले को समझना आसान हो जाएगा.

dhobha2016 रियो ओलंपिक में भारत को अभी तक एक भी मेडल नहीं मिला है. आसार अब इसी बात के हैं कि पिछली बार के मुकाबले हमें कम मेडलों से संतोष करना पड़ेगा. 2012 में भारत के खाते में कुल 6 मेडल आए थे. निशानेबाजी में अब तक मिली नाकामी निराश करती है. तीरंदाजी में भी जिस तरह के नतीजे आने चाहिए थे, वो नहीं आए. नतीजा सोशल मीडिया में चर्चा शुरू हो गई. सेलीब्रिटी लेखक शोभा डे ने ट्वीट किया.

उन्होंने शायद समझना चाहा भी नहीं. उनके इस ट्वीट के बाद अभिनव बिंद्रा और सचिन तेंडुलकर जैसे दिग्गजों ने उन्हें जवाब दिया. जवाब का लब्बोलुआब ये था कि पहले वो ओलंपिक के स्तर को समझ लें उसके बाद कुछ कहें.

शोभा डे शायद ही कभी ओलंपिक स्टेडियम में गई होंगी. उन्हें शायद ही पता होगा कि वहां का माहौल क्या होता है. जिस वक्त गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी के देश का झंडा ऊपर जा रहा होता है, पूरा स्टेडियम तालियां बजा रहा होता है, देश का राष्ट्रगान बज रहा होता है. उस वक्त खिलाडियों की आंखें नम होती हैं. उसके फैंस की आंखे नम होती हैं. एक सेकंड के लिए सोच कर देखिए कि अगर आपकी किसी कामयाबी पर भारत का तिरंगा हजारों लोगों के सामने सबसे ऊपर जाए, राष्ट्रगान बजे तो क्या होगा. रोंगेट खड़े हो जाते हैं. और क्या आपको जीवन में कभी भी ऐसा करने का मौका मिले तो आप उसके लिए अपना जी-जान नहीं लगाएंगे. जवाब आपको खुद ब खुद मिल गया होगा. हर एथलीट जब स्टेडियम में घुसता है तो वो मेडल जीतने के लिए ही जाता है, वहां से हारने के लिए नहीं.

शोभा डे को शायद पता नहीं होगा कि सायना नेहवाल जब बीजिंग ओलंपिक्स में हार गई थीं तो उन्होंने कोच गोपीचंद से मिलने के बाद सबसे पहले कहा था-मुझे वापस घर जाना है. उस वक्त सायना की उम्र 17-18 साल थी. उस समय ‘सेल्फी’ का दौर नहीं था, लेकिन तस्वीरें खिंचाने और शॉपिंग करने से उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था. फिर भी उन्हें वहां एक सेकंड रूकने का मन नहीं कर रहा था, क्योंकि वो हार गई थीं. हारने के बाद एथलीट को रोते हम सभी ने देखा है. हाल ही में व्हाट्सएप पर क्लिप बहुत वायरल हुई थी जिसमें एथलेटिक्स इवेंट में दौड़ते वक्त एक रेसर के पैर की मांस पेशियां ट्रैक पर ही खींच जाती हैं. वो जानता है कि अब वो जीत नहीं सकता है, लेकिन वो लंगड़ा लंगड़ा कर अपनी रेस पूरी करना चाहता है. सिर्फ शोभा डे ही नहीं अभी बहुत सारे लोग भारतीय एथलीटों की आलोचना करेंगे लेकिन उनसे विनती सिर्फ इतनी है कि आलोचना करने से पहले ओलंपिक का मतलब थोड़ा जान लें. ओलंपिक का स्तर थोड़ा समझ लें. ओलंपिक में होने वाली प्रतिस्पर्धा को आंक लें.
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