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Wednesday, 17 August 2016

पीवी सिंधु के खेलने के अंदाज में क्यों दिखाई देते हैं वीरेंद्र सहवाग

 lukiwils     05:38     वरिष्ठ खेल पत्रकार, शिवेन्द्र कुमार सिंह     No comments   


करीब 3-4 साल पहले की बात होगी. सुबह सुबह तड़के यही कोई 6 बजे के आस पास का वक्त रहा होगा. एक पतली दुबली लंबी सी लड़की ने एकेडमी के बड़े से हॉल में ‘एंट्री’ की. अपनी ‘किट’ रखने के बाद दौड़कर कोर्ट के कुछ चक्कर लगाए. उसके बाद हाथ में रैकेट थामा और प्रैक्टिस शुरू हो गई. उस हॉल में करीब एक दर्जन खिलाड़ी और भी खेल रहे थे. लेकिन उस लड़की की तरफ थोड़ी थोड़ी देर में स्वाभाविक तौर पर सभी की नजर जा रही थी. जिसकी एक वजह थी उसकी हंसी. उसके चेहरे पर अपने हर एक शॉट के बाद अपनी ताकत और कमजोरी को समझने की हंसी. वो बेफिक्र थी. अल्हड़. बेपरवाह. उसे सिर्फ अपनी प्रैक्टिस से मतलब था. हैदराबाद की पुलेला गोपीचंद एकेडमी में पीवी सिंधु से ये मेरी पहली मुलाकात थी. मुलाकात भी क्या, ये पहला मौका था जब मैंने पीवी सिंधु को प्रैक्टिस करते देखा था. ऐसा लगा जैसे वीरेंद्र सहवाग को प्रैक्टिस करते देख रहा हूं, ऐसा क्यों लगा इसका जिक्र आगे करूंगा.

बाद में गोपीचंद ने उनके बारे में बताया कि वो हर सुबह 50 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर से उनकी एकेडमी में आती रही हैं. दिलचस्प बात ये थी कि उन्हें कभी देर नहीं होती. अगर आप पीवी सिंधु के वीकिपीडिया पेज को पढ़ेगे तो उसमें भी ये बात अंग्रेजी के एक अखबार के हवाले से लिखी हुई है. ये वो दौर है जब सायना नेहवाल बैडमिंटन स्टार हुआ करती थीं. उन्होंने तमाम बड़ी प्रतियोगिताएं जीती थीं. ओलंपिक का ब्रांज मेडल उनके पास था. ऐसे में पीवी सिंधु के बारे में कम ही लोग जानते थे. ये स्वाभाविक भी है. नाम कमाने के लिए बहुत मेहनत करनी होती है. खुद को साबित करना होता है. सायना नेहवाल ने खुद को साबित किया था, अभी पीवी सिंधु को खुद को साबित करना था.

पीवी सिंधु के लिए भी जल्दी ही वो वक्त आया जब उन्होंने खुद को साबित करने की लड़ाई शुरू की. दुनिया को ये दिखाना शुरू किया कि भारत के पास अगली सायना नेहवाल तैयार हो रही है. उन्होंने 2013 में मलेशिया ओपन जैसा बड़ा टूर्नामेंट जीता. उससे पहले वो चाइना सुपर सीरीज में ब्रांज मेडल जीतने का कारनामा भी कर चुकी थीं. इसके बाद हर साल 6 महीने के अंतराल पर पीवी सिंधु बैडमिंटन कोर्ट में कमाल करती रहीं और सुर्खियां बटोरती रहीं. आज वही पीवी सिंधु हैं, जिन्होंने रियो ओलंपिक में भारत की उम्मीदों को जिंदा रखा है. उन्होंने सेमीफाइनल में जगह पक्की कर ली है, जहां उनका मुकाबला जापान की निजोमी ओकहारा से होना है. एक और जीत उन्हें फाइनल का टिकट दिलाएगी. साथ ही साथ उनका ओलंपिक मेडल पक्का हो जाएगा.

पीवी सिंधु का खेल ‘कनेक्शन’

पीवी सिंधु भी बैडमिंटन की स्टार खिलाड़ी सायना नेहवाल के शहर हैदराबाद से ही हैं. उनके माता पिता वॉलीबॉल के खिलाड़ी थे. पिता पीवी रमन्ना ने भारतीय टीम की कप्तानी की है, अर्जुन अवॉर्डी भी रहे हैं. जाहिर है कि सिंधु में खेल को लेकर दिलचस्पी और अनुशासन अपने घर से ही मिला है. सायना की तरह ही सिंधु भी कोच गोपीचंद की एकेडमी में प्रैक्टिस करती हैं. सायना ने कुछ साल पहले गोपीचंद की एकेडमी छोड़ दी थी, लेकिन पीवी सिंधु अब भी गोपीचंद की एकेडमी में ही हैं.

पीवी सिंधु की हंसी का राज

अगर आप पीवी सिंद्धू का खेल देखेंगे और उनकी काबिलियत को परखेंगे तो आप सबसे पहले यही कहेंगे कि गजब की ‘नैचुरली टैलेंटड’ खिलाड़ी हैं. शारीरिक बनावट के लिहाज से भी पीवी सिंधु अच्छी एथलीट हैं. पीवी सिंद्धू की लंबाई 5 फुट 10 इंच के आस पास है. बैडमिंटन कोर्ट में दमदार शॉट लगाने से लेकर कोर्ट को कवर करने तक में ये लंबाई खूब काम आती है. पीवी सिंधु के खेल को समझने के लिए वीरेंद्र सहवाग का उदाहरण दिया जा सकता है. जो मैच से पहले कभी पिच नहीं देखते. विरोधी टीम के बारे में नहीं सोचते. सामने कितना बड़ा गेंदबाज है इससे उन्हें फर्क नहीं पड़ता था. उन्हें बस इतना पता था कि उनके हाथ में बल्ला है और सामने वाले गेंदबाज के हाथ में गेंद और उनका काम गेंदबाज की धुनाई करना है. वो तिहरा शतक पूरा करने के लिए 6 मारने का ‘रिस्क’ ले सकते हैं. वो वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में हर मैच की पहली गेंद पर बाउंड्री मारने जैसा ‘फन’ कर सकते हैं. इसीलिए मुश्किल से मुश्किल वक्त में वो क्रीज पर गुनगुनाते हुए बल्लेबाजी करते थे. कुछ वैसा ही ‘कॉन्फिडेंस’ पीवी सिंधु में भी है. इसीलिए कोर्ट में उनके चेहरे पर सिर्फ दो चीजें दिखाई देती हैं या तो पसीना या फिर हंसी.

देश को ऐसे खिलाड़ियों की कितनी जरूरत है

सायना नेहवाल अक्सर कहती रही हैं कि बैडमिंटन के खेल में चीन के खिलाड़ियों को हराना इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि आम तौर पर दुनिया में टॉप के 5 खिलाड़ियों में से 4 खिलाड़ी अक्सर चीन के ही होते हैं. ऐसे में किसी ना किसी दौर में चीन के खिलाड़ी के खिलाफ गलती हो ही जाती है. अगर आप सायना नेहवाल से इसका तोड़ पूछेंगे तो वो बताएंगी कि इसका सिर्फ एक तोड़ है और वो है ज्यादा से ज्यादा ‘वर्ल्ड लेवल’खिलाड़ियों को तैयार करना. ये तर्क समझ में भी आता है, कोई भी खिलाड़ी जब अभ्यास के दौरान ‘वर्ल्ड लेवल’ खिलाड़ियों के खिलाफ मुकाबला करेगा तो उसके प्रदर्शन में निखार आना तय है. सिंधु के तौर पर देश को एक और ऐसा ही ‘वर्ल्ड लेवल’ खिलाड़ी मिला है. अफसोस, सायना रियो ओलंपिक से बाहर हो चुकी हैं, लेकिन उनकी ये सोच बिल्कुल सटीक है.
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